"टूटे सपनों की सवारी" – शाहीबा बानो की कहानी
"टूटे सपनों की सवारी" – शाहीबा बानो की कहानी
"मेरे हाथों में ऑटो की स्टेयरिंग तो है… पर दिल में शौहर की कब्र की मिट्टी है।"
मैं, शाहीबा बानो, उम्र 38 साल, एक आम सी औरत हूँ। मेरी दुनिया बहुत छोटी थी– मेरे शौहर मरहूम इब्राहीम, तीन मासूम बेटियाँ और एक नन्हा बेटा। हमारे पास कोई बड़ा मकान, बैंक बैलेंस या जमीन-जायदाद नहीं थी – लेकिन हाँ, हमारे पास एक-दूसरे के लिए प्यार, मेहनत और छोटे-छोटे सपने ज़रूर थे।
हम पति-पत्नी दोनों मज़दूरी करते थे–सुबह
निकलते और शाम को लौटते। पसीना तो रोज़ बहता था, लेकिन थकान नहीं होती थी, क्योंकि
हम जानते थे कि ये सब हम अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कर रहे हैं।
हमने चवन्नी-चवन्नी जोड़कर कुछ पैसे जमा
किए थे। कुछ मेरी बहन से उधार लिया, कुछ गाँव के लोगों से मांगकर। हमने
मिलकर एक ऑटो टेम्पो खरीदा
– सोचकर
कि अब अपने पसीने से नहीं, इस ऑटो से कमाई होगी और ज़िंदगी में
थोड़ी राहत आएगी।मगर काश, हमें मालूम होता कि यही ऑटो एक दिन मेरी
ज़िंदगी का सबसे कड़वा मोड़ बन जाएगा...
7 फरवरी 2021 – मेरी ज़िंदगी का सबसे डरावना दिन"
उस दिन मेरे शौहर इब्राहीम रोबर्ट्सगंज
से डाला के लिए सवारी लेकर निकले थे। मैं रोज़ की तरह घर में थी, जब
मेरे बहनोई कुतुबुद्दीन का
फोन आया –
"गाड़ी को पुलिस ने पकड़ लिया है… इब्राहीम
को थाने ले गए हैं।"मुझे जैसे बिजली ने छू लिया। मैं बिना कुछ सोचे, अपने
बच्चों को पड़ोस में छोड़कर चोपन थाना भागी।वहाँ
जो देखा, सुना, समझा – वो मेरी ज़िंदगी का सबसे भयानक अनुभव
था।मैंने दरोगा जी से पूछा –“मेरे पति का क्या कसूर है?”
उत्तर मिला – “10,000 रुपए लाओ, नहीं तो छोड़ेंगे नहीं।”मैंने
हाथ जोड़कर कहा – “साहब, गरीब हैं, कहाँ से लाऊँ इतने पैसे?”
तो दरोगा बोला – “मुसलमान
हो… कुछ भी कर सकते हो, अब भुगतो।”
ये सुनकर मेरा शरीर कांपने लगा… मैं चीख भी ना सकी, और
रो भी नहीं पाई।
"मौत जो जेल में हुई, वो हत्या थी… सुसाइड नहीं"
"औरत के अकेले होने की सज़ा – समाज हर कदम पर देता है"
पति के जाने के बाद मेरा दुःख सिर्फ
उनके खोने का नहीं था, बल्कि समाज
के बदलते रवैये का भी था।पहले जो लोग हमारे साथ बैठते
थे, अब ताने देने लगे। रिश्तेदार, जो बातें बनाते थे, अब
खामोश हो गए। “औरत अकेली हो गई है…” – यही सोचकर सबने मुँह मोड़ लिया।घर में
रोटी का संकट था, बच्चे स्कूल जाना बंद कर चुके थे। एक रात मेरे बेटे ने भूख से
रोते हुए कहा अम्मी, अब्बू क्यों नहीं आते?” मैं बस रो पड़ी… क्या
बताती?
"ऑटो चलाने वाली औरत – समाज की नजरों में गुनाहगार"
मेरे शौहर ने मुझे जबरदस्ती ऑटो चलाना सिखाया था। उस वक्त मुझे शर्म आती थी “लोग क्या कहेंगे? औरत
होकर ऑटो चलाती है? पर वो कहते – “अगर मैं ना रहा तो
तू ये ऑटो चला लेगी। बच्चों को भूखा नहीं सुलाना पड़ेगा। काश, वो
मज़ाक होता काश, वो दिन कभी आता ही ना। आज मैं वही ऑटो चला रही हूँ – शौहर
की यादों के साथ। मगर समाज की आँखों में अब भी शक, हँसी और ताने हैं।
“देखो,
वो औरत ऑटो चलाती है अकेली है कौन जानता
है कहाँ जाती है?
हर दिन लोगों की बातें सुनती हूँ, मगर
अब जवाब नहीं देती।
अब मैं एक माँ हूँ और मेरी लड़ाई बच्चों के लिए है।
आज भी जब मैं ऑटो स्टार्ट करती हूँ, दिल
से दुआ निकलती है –
"या अल्लाह, आज का दिन मेरे बच्चों के लिए आसान बनाना।"
मैं अकेली हूँ, पर
हिम्मत से खड़ी हूँ। क्योंकि मेरी लड़ाई सिर्फ अपने पति के लिए नहीं – हर
उस औरत के लिए है, जो अपने हक और इज्जत के लिए लड़ रही है।
“Riding on Broken Dreams” – The Story of Shahiba Bano
“There’s a steering wheel of an auto-rickshaw in my hands… but in my heart lies the soil from my husband’s grave.”
Both of us worked as daily wage laborers – leaving home at dawn and returning by dusk. Sweat was our constant companion, but exhaustion never truly touched us. We knew we were doing it all for the better future of our children.
We saved every single coin, scraped together what we could. We borrowed some money from my sister, some from the villagers. Together, we bought an auto-rickshaw – with hope in our hearts that now we’d earn through this vehicle, and life would offer us a little relief.
But if only we had known – this very auto would one day become the most bitter turning point of my life…
7 February 2021 – the darkest day of my life
What I saw, heard, and understood there became the most terrifying memory of my life.
“The death in jail was murder, not suicide.”
“A woman must pay the price of being alone – at every step, society makes sure of it.”
“A woman driving an auto – society sees her as a criminal.”
Yet society still stares with suspicion, laughs, whispers.
“Look, that woman drives an auto. She’s alone. Who knows where she goes?”
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