The Brutal Reality of Police Abuse: A Testimony of Unjust Treatment and Torture
"हमने पुलिस का क्या बिगाड़ा था, जो मुझे इतनी बुरी तरह पीटा?"
मेरा नाम गंगाराम राजभर है। मेरी उम्र 38 वर्ष है। मेरे पिता स्व. रामदुलार हैं, और मैं विवाहित हूँ। मेरे दो बेटे हैं। मैं साक्षर हूँ और बनी मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। मेरा निवास ग्राम-चकिया अमरतल, थाना-सम्मनपुर, जिला-अम्बेडकरनगर है।
18 जुलाई 2022 की तारीख थी। मैं अपने खेत पर गया था। मेरे जाने के कुछ देर बाद, तकरीबन नौ बजे, गाँव के विनोद पुत्र घूरे अपने परिवार के साथ मेरे घर के सामने ग्राम समाज की जमीन पर लकड़ी रखकर कब्जा करने लगे। मेरी पत्नी ने इसका विरोध किया, तो विनोद ने 112 नंबर की पुलिस को फोन किया। पुलिस मौके पर आई और बाद में थाने चली गई। जब मैं घर वापस आया तो मुझे यह बातें पता चलीं। पुलिस ने मुझे भी थाने बुलवाया। मैं थाने गया, तो पुलिस ने मुझसे कहा, "बैठ जाओ, समझौता करवाएंगे।" उस वक्त थाने में विपक्षी भी मौजूद थे। पुलिस की बात मानकर मैं थाने में बैठा रहा।
करीब दो घंटे बाद, थाने के दो सिपाही बृजेश चौहान और आर्यन भारद्वाज ने मुझे लॉकअप की ओर कोने में बुलाया। जब मैं गया, तो दोनों बिना कुछ बोले अपना बेल्ट निकालकर मेरे नितंब (बटक) पर जोर-जोर से बुरी तरह मारने लगे। मैं चीखने-चिल्लाने लगा, "साहब, मेरी गलती क्या है?" उनकी मार से मैं मुंह के बल जमीन पर गिर गया। इसके बाद वे मुझ पर लात-घूसें चलाने लगे। मैं उनसे मिन्नतें करता रहा, "मुझे मत मारो," लेकिन दोनों सिपाही लगातार मुझे मारते रहे। जब दीवान जी से बर्दाश्त नहीं हुआ, तो वह आकर सिपाहियों से बोले, "अगर यह मर गया तो इसका जवाब कौन देगा?" यह कहते हुए दीवान जी ने मुझे उठाया और वहां से ले जाकर दूसरी जगह बिठा दिया। विपक्षी यह सब देख रहे थे। उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मुझसे बैठा नहीं जा रहा था। बार-बार मन में यही सवाल आ रहा था कि हमने पुलिस का क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बुरी तरह पीटा?
करीब चार बजे IPC की धारा 151 के तहत चालान किया गया। वहां से मेडिकल मुआयना करवाने के बाद मुझे तहसील ले जाया गया। वहां लोगों की मदद से मेरी जमानत हुई। जमानतदार मेरी हालत देखकर मुझे घर छोड़ने आ रहे थे। तभी रास्ते में मुझे खून की उल्टियाँ होने लगीं। वे मुझे तुरंत जिला अस्पताल ले गए। मेरी हालत देखकर मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। उस समय पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि जान निकल जाएगी। अस्पताल में भी तीन-चार बार उल्टी हुई। डाक्टर बहुत कम आते थे, नर्स दवा देकर चली जाती थीं। यह सब देखकर बहुत डर लग रहा था, और भगवान से यही दुआ कर रहा था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे बीवी-बच्चों का क्या होगा। छह दिन तक मैं अस्पताल में भर्ती रहा, उसके बाद मुझे डिस्चार्ज कर दिया गया।
उस दौरान मेरे परिवार ने बहुत तकलीफें सही। मुझे इस बात का बेहद अफसोस है कि बेवजह स्थानीय पुलिस ने हिरासत में रखकर मुझे जानवरों की तरह मारा-पीटा। बात सिर्फ इतनी थी कि मेरे घर से दस कदम दूरी पर ग्राम समाज की जमीन पर एक बीघे का बड़ा गड्ढा था, जिसमें गाँव के लोगों के नाले का पानी आता था। उस गड्ढे के चारों तरफ गाँव के करीब तीस-पैंतीस लोग अपना गोबर, पुआल और सामान रखते थे। मैंने भी वहां अपना पुआल और ईंट रखा था। कुछ दिन पहले लेखपाल दिनेश तिवारी विनोद के साथ आए और बोले, "पैसा दो या यहां से सामान हटाओ।" लेखपाल साहब की बात सुनकर मैंने कहा, "ठीक है साहब, हम अपना सामान हटा लेंगे।" 17 जुलाई 2022 को लेखपाल साहब और विनोद खड़े होकर मेरा सामान हटवाए। मैंने उस वक्त कुछ नहीं बोला। वे लोग चले गए। दूसरे दिन, 18 जुलाई को विनोद अपने परिवार के साथ आया और मेरे स्थान पर लकड़ी रखकर कब्जा करने की कोशिश करने लगा। जब मेरी पत्नी ने कहा, "आप मेरा सामान हटाकर अपनी लकड़ी रख रहे हैं," जबकि उसका घर यहां से डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर है, तो उन्होंने पुलिस का सहारा लेकर मेरा शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया।
इस घटना के बाद से हर वक्त मन में भय बना रहता है। कहीं आने-जाने का मन नहीं करता। अजीब सी घबराहट होती है। जब से पुलिस ने मारा है, हर वक्त तकलीफ में रहता हूँ। बहुत अकेलापन महसूस होता है। बच्चों के भविष्य की चिंता लगी रहती है। यह खबर अखबार में भी छपी थी, जिसके बाद आपकी संस्था, मानवाधिकार जन निगरानी समिति, ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पैरवी की। इस संबंध में 5 सितंबर 2022 को पुरानी तहसील में सीओ साहब ने मेरा बयान लिया। जो कुछ मेरे साथ हुआ था, मैंने वही सब बातें उन्हें बताई। अब कुछ उम्मीद जगी है और यह भी पता चला है कि लेखपाल साहब को निलंबित कर दिया गया है।
मैं चाहता हूँ कि मेरे साथ न्याय हो, ताकि भविष्य में किसी बेगुनाह के साथ ऐसा सुलूक न हो।
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