एनएचआरसी ने प्रशासन से क़र्ज़ में फंसकर जान गंवाने वाले शख़्स के परिवार को आर्थिक मदद देने को कहा
एनएचआरसी ने प्रशासन से क़र्ज़ में फंसकर जान गंवाने वाले शख़्स के परिवार को आर्थिक मदद देने को कहा
सितंबर 2024 में यूपी के कुशीनगर ज़िले में मुसहर समुदाय से आने वाले शैलेश की संदिग्ध मौत हो गई थी. बाद में सामने आया था कि वे माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के क़र्ज़ जाल में फंसे थे. इस घटना पर द वायर में छपी एक रिपोर्ट के आधार पर मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी. अब आयोग ने ज़िला प्रशासन को शैलेश के परिवार को आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया है.
कुशीनगर: माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज जाल में फंसे कुशीनगर जिले के जंगल खिरकिया गांव के गरीब मुसहर नौजवान शैलेश की 17 सितंबर 2024 की रात संदिग्ध स्थिति में मौत के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने कुशीनगर के जिलाधिकारी को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) नियम, 2016 के तहत पीड़ित को आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया है.
एनएचआरसी ने यह आदेश एक वर्ष की सुनवाई के उपरांत चार दिसंबर 2025 को जारी किया. आयोग ने छह हफ्तों के अंदर अपने आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट भी मांगी है.
बता दें कि शैलेश की पत्नी माला ने छह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से 2.30 लाख रुपये का कर्ज लिया था. कर्ज को लेकर उनकी गांव के एक परिवार से विवाद के बाद मारपीट हुई. तबियत बिगड़ने पर उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम के बाद शैलेश का शव 19 सितंबर को उसके गांव जंगल खिरकिया आया तो ग्रामीणों ने अंत्येष्टि करने से मना कर दिया और धरने पर बैठ गए. करीब चार घंटे के धरने के बाद अधिकारियों ने जब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया तब अंतिम संस्कार किया गया.
पडरौना कोतवाली पुलिस ने इस मामले में चार व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज किया था. शैलेश की मौत के बारे में द वायर हिंदी ने 21 सितंबर 2024 विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी. जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और पीपुल्स विजिलेंस कमेटी फॉर ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) के संस्थापक डॉ. लेनिन रघुवंशी ने उक्त रिपोर्ट के आधार पर एनएचआरसी में शिकायत दर्ज करायी.
डॉ. लेनिन ने अपनी शिकायत में कहा कि शैलेश माइक्रोफाइनेंस कर्ज़ में फंसा हुआ था और उन्हें लगातार परेशान किया गया और डराया-धमकाया गया, जिसके कारण एक हिंसक घटना हुई और बाद में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. शैलेश और माला का दो साल का एक बेटा है और माला उस समय सात महीने की गर्भवती थी. परिवार को लोन एजेंट परेशान कर रहे थे, जिससे एक स्थानीय परिवार से उनका झगड़ा हो गया था.
शिकायत में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज जाल में फंसे अन्य गरीब गांव वालों का भी ज़िक्र है, जो परेशान किए जाने के चलते जान दे रहे हैं.
शिकायत के मुताबिक, एक साल के अंदर कर्ज के जाल में फंसकर जिले में गरीब गांव वालों की यह तीसरी मौत थी. यह भी बताया गया है कि दुदही इलाके के दसहवां गांव के एक परिवार को अपने बच्चे को 20,000 रुपये में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि परिवार कर्ज के जाल में फंसा हुआ था. इस घटना की विस्तृत रिपोर्ट 17 सितंबर 2024 को द वायर हिंदी में प्रकाशित हुई थी. रिपोर्ट में सामने आया था कि बच्चा बेचे जाने के कारणों में माइक्रोफाइनेंस के कर्ज जाल भी एक था.
उन्होंने मामले की पूरी जांच, परिवार के लिए कर्ज माफी और आगे शोषण से बचाने के लिए आर्थिक मदद की मांग की.
शिकायत पर कार्रवाई
20 नवंबर 2024 को एनएचआरसी ने शिकायत की एक कॉपी कुशीनगर के जिलाधिकारी को भेज कर पीड़ित परिवार को राज्य की अलग-अलग कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1995 के नियमों के तहत दी गई आर्थिक राहत की स्थिति, जिले में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा गरीब ग्रामीणों को कर्ज के जाल में फंसाने के तरीकों, उनके द्वारा लगाए गए कर्ज पर ब्याज दर और कर्ज वसूलने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के बारे में सर्वे रिपोर्ट के साथ-साथ ज़रूरी सुधारात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए छह हफ़्ते के अंदर अनुपालन रिपोर्ट मांगी.
आयोग ने पुलिस अधीक्षक से शैलेश की मौत के केस में दर्ज एफआईआर पर की गई जांच की भी रिपोर्ट मांगी. कुशीनगर के एसपी की 02.04.2025 की रिपोर्ट में कहा गया है कि विसरा रिपोर्ट में जहर पाया गया है और मामले की जांच अभी भी चल रही है.
दुदही ब्लाक के दसहवां गांव निवासी हरीश पटेल द्वारा कर्ज के जाल में फंसकर अपने बेटे को बेचने के घटना के बारे में कुशीनगर जिला प्रशासन ने एनएचआरसी को बताया कि पटेल की पत्नी ने एक निजी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया. चूंकि बच्चे के माता-पिता अस्पताल का बिल नहीं चुका पा रहे थे, इसलिए उन्हें मजबूर होकर अपना बच्चा आरोपियों को 20,000 रुपये की मामूली रकम पर बेचना पड़ा. जांच पूरी होने पर आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर दी गई है.
मानवाधिकार आयोग ने 29 मई 2025 को कुशीनगर के एसपी से एक बार फिर शैलेश की मौत में दर्ज केस की वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट मांगी.
एसपी ने आयोग को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस घटना की जांच पडरौना सदर के सर्किल ऑफिसर ने की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई नतीजा नहीं निकला, जिससे विसरा सुरक्षित रखा गया. गोरखपुर स्थित फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) ने जहर होने की पुष्टि की. आरोपी वीरेंद्र पुत्र संतोष को बीएनएस की धारा 351(3)/108/352 और धारा 3(2)(V) एससी/एसटी एक्ट के तहत पहली नज़र में दोषी पाया गया और 9 अप्रैल 2025 को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. दूसरे आरोपियों- सुभाष, मंटू, और उमा निषाद के खिलाफ सबूत नहीं मिलने पर दोषी नहीं पाया गया. चार्जशीट फाइल कर दी गई है और केस विचाराधीन है.
अब आयोग ने डीएम और एसपी की सभी रिपोर्ट की समीक्षा करने पर पाया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम सही तरीके से लागू किया गया है और नियमानुसार पीड़ित का परिवार कानूनी तौर पर आर्थिक राहत का हकदार है. आयोग ने जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि छह हफ़्ते के अंदर शैलेश के परिवार को आर्थिक राहत देकर अनुपालन रिपोर्ट भेजी जाए.
‘आयोग का आदेश कानूनी जवाबदेही के महत्व पर ज़ोर देता है’
आयोग के आदेश को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन ने कहा कि आयोग का यह आदेश कमजोर दलित समुदाय के परिवार को न्याय और मदद दिलाने की दिशा में एक जरूरी कदम है. यह तुरंत राहत, पारदर्शी जांच और कानूनी जवाबदेही के महत्व पर ज़ोर देता है.
उन्होंने आगे कहा कि बिना रेगुलेटेड माइक्रोफाइनेंस कर्ज लोगों के शोषण और परेशानी बन रहे हैं. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अत्याचार के खिलाफ मजबूत संस्थागत कार्रवाई की ज़रूरत है. यह मामला गहरे ढांचागत मुद्दों—कर्ज जाल, गलत तरीके से कर्ज देना, जाति आधारित वंचना और स्थानीय संरक्षण व्यवस्था की नाकामी को सामने लाता है.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पीवीसीएचआर कार्रवाई पर नज़र रखते हुए पीड़ित परिवार की मदद जारी रखेगा.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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